pig’s heart transplant : इंसान के शरीर में सूअर का दिल : असम के डॉक्टर ने कहा- जो अमेरिका ने किया, उसे वे 24 साल पहले कर चुके थे

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इंसान के शरीर में सूअर का दिल

: असम के डॉक्टर ने कहा- जो अमेरिका ने किया, उसे वे 24 साल पहले कर चुके थे

गुवाहाटी: अमेरिका के मैरीलैंड अस्पताल में हाल में डॉक्टरों द्वारा एक इंसान के शरीर में सूअर के हृदय को ट्रांसप्लांट करने की मंगलवार को आई खबर के बाद असम  के डॉक्टर धनी राम बरुआ ने कहा है कि उन्होंने ऐसा काफी पहले कर दिया था। बरुआ ने कहा कि अमेरिका ने जो काम 2022 में किया है, उसे उन्होंने 1997 में ही कर दिया था।

डॉ बरुआ अब 72 साल के हो चुके हैं। वे साल 1997 में एक विवाद में फंस गए थे जब उन्होंने एक एक्सनोट्रांसप्लांटेशन (एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति में अंगों का प्रत्यारोपण) सर्जरी की थी और 32 साल के व्यक्ति पर सूअर के दिल और फेफड़ों को ट्रांसप्लांट किया।

ये सर्जरी गुवाहाटी के बाहरी इलाके सोनपुर में बरुआ के एक क्लिनिक में की गई थी। सर्जरी के बाद 32 वर्षीय शख्स सात दिनों तक जीवित रहा था। हालांकि फि उसकी कई संक्रमणों की वजह से मौत हो गई।

सर्जरी को लेकर तब खूब हुआ था विवाद

इस सर्जरी को लेकर तब खूब विवाद हुआ था और असम में तत्कालीन असम गण परिषद सरकार ने एक जांच शुरू कर दी थी। बाद में हांगकांग के सर्जन डॉ जोनाथन हो केई-शिंग की गिरफ्तारी का आदेश दिया गया, जिन्होंने सर्जरी में सहायता की थी। साथ ही डॉ. बरुआ भी गिरफ्तार हुए।

मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 के तहत अनैतिक प्रक्रिया और गैर इरादतन हत्या के दोषी करार हुए बरुआ और हो केई-शिंग दोनों को 40 दिनों के लिए जेल भेजा गया था।

सोनपुर में डॉ धनी राम बरुआ हार्ट इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर की ओर से बरुआ की ओर से बोलते हुए दालिमी बरुआ ने बताया कि वह (डॉ धनी राम बरुआ) अमेरिका से आई खबर से बहुत हतप्रभ या उत्साहित नहीं थे। दलिमी बरुआ खुद को धनी राम बरुआ की करीबी सहयोगी बताती हैं जो कई सारी रिसर्च में उनकी भागीदार रहीं।

दलिमी ने कहा, ‘ये सर (बरुआ) के लिए कोई नई बात नहीं थी क्योंकि उन्होंने ऐसा 1997 में कर दिया था। अब इसमें बड़ी बात क्या है।’

दालिमी ने कहा कि कुछ साल पहले एक स्ट्रोक के बाद ब्रेन सर्जरी और ट्रेकियोस्टोमी कराने के बाद डॉ. बरुआ की साफ-साफ बोलने की क्षमता प्रभावित हुई थी। उन्होंने कहा, ‘हालांकि हम समझ सकते हैं कि वह क्या कह रहे हैं। उन्होंने हमें बताया कि यह संभव है कि अमेरिकी डॉक्टरों ने उसी प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जैसा उन्होंने 1997 में किया था। उन्होंने बार-बार कहा है कि सूअर के अंगों का इस्तेमाल मनुष्यों में किया जा सकता है, लेकिन किसी ने उन्हें नहीं सुना। जेल से छूटने के बाद उन्होंने पाया कि उनका पूरा अस्पताल जलकर खाक हो गया था।’

दालिमी ने कहा कि डॉ बरुआ को वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे। वहीं, आलोचकों के मुताबिक बरुआ के दावों और चिकित्सा प्रक्रियाओं को गंभीरता से नहीं लिया गया और न ही वैज्ञानिक समुदाय द्वारा स्वीकार किया गया क्योंकि उन्होंने कभी भी अपने निष्कर्षों की वैज्ञानिक रूप से समीक्षा नहीं की।